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ये कविता उन सभी लोगों को समर्पित है जो इसे समझ सकते हैं, महसूस कर सकते हैं, किसी भी तरह की मानसिक परेशानी से गुज़रे हैं या गुज़र रहे हैं। ये शब्द मेरे ज़रूर हैं, लेकिन ये भावनाएं आप सबकी हैं, और मैं इसमें आप सबके साथ हूं। हमेशा...

आ बैठ ज़िंदगी, सौदा करते हैं,

बहुत हुई ये खींचा तानी, 

चल समझौता करते हैं।

 

मंज़ूर हैं मुझे तेरे उतार चढ़ाव,

ऊंचे भाव खरीदने को तैयार हूं मैं,

बदले में तू मेरी खुशियों के दाम कम कर,

आ एक दूसरे पे भरोसा करते हैं।

अगर रात तेरे हैं, तो दिन मेरे रहने दे,

चल आज शाम को बैठ के इस पे चर्चा करते हैं,

तू थोड़ा मुझे आज़्माले, मैं थोड़ा तुझे जी लेता हूं,

आ मिल के इन सांसों का खर्चा करते हैं।

आ चल बैठ ज़िंदगी, एक सौदा करते हैं।

 

किसी रोज़ तू भले ही ले चल मुझे अपने चाहे वक़्त में,

पर एक रोज़ मेरी भी पसंदीदा जगह चलते हैं,

मैं हमेशा तेरे ग़म में साथ रोने का वादा करता हूं,

चल आज मेरी खुशियों में मिलके साथ हंसते हैं।

आ चल बैठ ज़िंदगी, एक सौदा करते हैं।

 

एक दिन तो तू गुज़र ही जाएगी नींद में, ख्वाब की तरह,

आ कुछ पल बैठ के हक़ीक़त से राब्ता करते हैं,

और नफरतें तो बहुत हैं ज़माने में निभाने को तुझसे,

चल इस ज़माने से छुप कर मोहब्बत करते हैं।

 

चल आ बैठ ज़िन्दगी आज एक सौदा करते हैं,

तू थोड़ा मुझे आज़्माले, मैं थोड़ा तुझे जी लूं,

आ मिल के इन सांसों का खर्चा करते हैं,

आ बैठ ज़िन्दगी, सौदा करते हैं।       

 -- राहुल कुशवाहा

To hear the poet narrate this beautiful poetry, click on the name of the title.

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